वक़्त
वक्त ने ली ऐसी करवट क्यों
लब खामोश से हो गए क्यों
जज्बातों पर यूं बंदिश लगी
कोहराम दिल में मचलने लगी
फासले दरमियां ज्यूँ बढ़ गए
जन्मों के वादे कहां खो गए
धुआं सा हो चला है परवाना
समा भी जैसे चाहे पिघलना
क्यों नजर खामोश से हो चले
बिन कहे अल्फाज दिल के बयां कर चले
तूफानों से लड़कर ना मिला किनारा
मांझी को नैया मिले दिखे जो अक्सर तुम्हारा
ख्वाबों का आशियाना बना ले जरा
मिन्नतों से भी ना मिलती जिंदगी दोबारा
कहीं वक्त न बना ले चादर को कफ़न
खिली ख्वाहिशें ना हो जाए दफन
उम्मीदों का दामन न छूट जाए कहीं
जिंदगी का सफर न रुक जाए यही
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Poem By Archana Snehi
Waqt Sbse bda sathi hota hai……. Isliye ye poem Harek logo k liye h……..jo waqt ka halat janta hai……. Nice poem…….